Sunday, February 7, 2010

अब न होगी प्रसव पीड़ा!!


तृप्ति नाथ


प्रसव पीड़ा से हर गर्भवती घबराती है। ऐसे में यदि कोई उन्हें इस दर्द से बचने की राह दिखाए, तो वह किसी खुशखबरी से कम न होगी। मातृत्व सुख लेने वाली स्त्रियों के लिए अब पीड़ा मुक्त प्रसव का विकल्प उपलब्ध है।



मां बनने का अहसास, यह सुख इस दुनिया में सिर्फ स्त्रियों को प्राप्त है। उनके लिए यह ढेर सारी खुशियां पाने का साधन है। लेकिन इस अनुभव के साथ प्रसव पीड़ा का असहनीय दर्द भी जुड़ा हुआ है। यह जानते हुए भी हर स्त्री मातृत्व सुख प्राप्त करना चाहती है, लेकिन प्रसव पीड़ा का भय उनके दिमाग के किसी कोने में जगह बना ही लेता है।



यही भय उन्हें सिजेरियन तकनीक का सहारा लेने के लिए बाध्य कर देता है और इसमें उन्हें संकोच भी नहीं होता। लेकिन इस भय से पार पाने का एक तरीका है, जिसे आजकल ‘वॉटर बर्थ’ के नाम से भली-भांति जाना जाता है। यह एक ऐसी तकनीक है, जिससे दूसरे फायदों के अलावा प्रसव पीड़ा से तकरीबन निजात-सी मिल जाती है। यह तकनीक हमारे लिए नई ज़रूर है, लेकिन इस तकनीक को जानना प्रत्येक गर्भवती स्त्री के लिए ज़रूरी हो गया है। हमारे देश के कुछ चुनिंदा शहरों में अब यह सुविधा उपलब्ध है।



पीड़ा बिना, शिशु जन्म!
स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. उर्वशी सहगल के शब्दों में, इस तकनीक के आने के बाद अब शिशु जन्म से दर्द का कोई रिश्ता नहीं रहा। चाइल्ड बर्थ एजूकेटर और डॉ. उर्वशी की मददगार दिव्या देसवाल के मुताबिक, उन्होंने वॉटर बर्थ तकनीक द्वारा अनेक महिलाओं का अपेक्षाकृत कम पीड़ा के साथ सफलता-पूर्वक प्रसव कराया है। दिल्ली की अंजली स्वरूप ने भी अपने दूसरे प्रसव में शिवांतिका को वॉटर बर्थ द्वारा जन्म दिया। अंजलि ने दिव्या देसवाल के चाइल्ड बर्थ प्रिपरेशन प्रोग्राम में भाग लिया था।



अपने अनुभव के बारे में वे बताती हैं कि पहले बच्चे के जन्म के समय उसे दिनभर प्रसव पीड़ा सहनी पड़ी थी। जबकि उसे एनेस्थिसिया दिया गया था। एक दिन उसने अमेरिका में रहने वाली अपनी एक सहेली से कम पीड़ा वाले वॉटर बर्थ (जल प्रसव) के बारे में सुना, जिसके बाद उसने वॉटर बर्थ द्वारा ही दूसरे बच्चे को जन्म देने का निश्चय किया।



अंजली के अनुसार, ‘मुझे सुबह नौ बजे लेबर पेन शुरू हुआ। दोपहर को मुझे पूल में ले जाया गया। जहां गुनगुना पानी मुझे राहत दे रहा था। तुरंत डॉक्टर को बुलाया गया और शाम को पांच बजे बच्चे ने जन्म लिया।’ बच्चे के जन्म के समय उनकी मां और पति लगातार उसके साथ रहे। इसके बाद रातभर हॉस्पिटल में रहने के बाद वह घर आ गई और कुछ दिनों के आराम के बाद रोज़मर्रा के कामों में जुट गई।



क्या है वॉटर बर्थ ?
डॉ. उर्वशी और दिव्या ने अनेक गर्भवती महिलाओं को प्रसव के दौरान मदद कर चुकीं हैं। वे बताती हंै कि वॉटर बर्थ पूरी तरह प्राकृतिक पद्धति है। इसके लिए हाॅिस्पटल में ९क्क् लीटर का अंडाकर पूल बनाया गया है, जिसे मिनरल वॉटर से भर दिया जाता है। इसमें पानी दो फीट से कुछ •यादा ऊंचाई तक भरा जाता है।



गर्भवती महिला पानी में बैठकर भारहीनता का अनुभव करती है और हल्का गर्म पानी उसके शरीर के तापमान को बढ़ाता है, जिससे रक्त संचार भी बढ़ जाता है। इससे मांसपेशियों का तनाव कम होता है और शरीर गर्भाशय को सही स्थिति के लिए प्रेरित करता है। इस आरामदायक अवस्था के कारण शरीर में प्राकृतिक दर्द निवारकों का स्त्राव होने लगता है और प्रसव बिना किसी पीड़ा के हो जाता है।



कोई खतरा नहीं
डॉ. उर्वशी के मुताबिक, बच्च गर्भ के अंदर भी तरल पदार्थ के बीच ही रहता है और तरल वातावरण में उसका जन्म आसान हो जाता है, इसलिए पानी में बच्चे के दम घुटने जैसी कोई गुंजाइश नहीं होती और न ही शिशु को कोई नुकसान पहुंचता है। नाभि से जुड़ी बच्चे की आहार नली को भी बाद में काटा जाता है ताकि बच्चे को मां के शरीर से लगातार ऑक्सीजन मिलती रहे।



लेकिन सभी महिलाएं वॉटर बर्थ प्रक्रिया में सफल नहीं हो पाती। इस बारे में चाइल्ड बर्थ एजूकेटर दिव्या देसवाल स्पष्ट करती हैं- ‘कभी-कभी नॉर्मल बर्थ कराना Êारूरी होता है, तो कई बार महिला पानी में बच्चे को जन्म देते समय बाहर आ जाती हैं।’ दिव्या लेबर रूम की अनेक विपरीत परिस्थितियों का सामना कर चुकी हैं, फिर भी वे जल प्रसव को दुनिया का सबसे अच्छा प्रसव माध्यम मानती हैं। (साभार- विमेन्स फीचर सर्विस)


 

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