Sunday, March 14, 2010
क्या स्कूलों में यौन शिक्षा उचित है?
यौन शिक्षा संबंधी सामग्री संतुलित होनी चाहिए। न तो इसमें एकदम खुलापन हो और न ही इसे बिल्कुल खत्म कर दिया जाए। यह कहना कि बच्चों को यौन शिक्षा देने की आवश्यकता नहीं है एकदम बेहूदा तर्क है।
देश की अधिकांश आबादी गांवों में निवास करती है और जिसका सामाजिक-सांस्कृतिक ताना-बाना कुछ विशेष तरह का होता है। इस कारण जहां खुलेआम सेक्स की बात भी नहीं होती, वहां स्कूलों में यौन शिक्षा की चर्चा से हड़कंप मचना स्वाभाविक ही है। यौन शिक्षा के नमूने, खासकर सचित्र किताबों ने तूफान खड़ा कर रखा है। कई राज्यों की सरकारें, सामाजिक-सांस्कृतिक संस्थाएं और राजनीतिक व गैर राजनीतिक संगठन इस पर आपत्ति उठा रही हैं। परंतु दूसरी ओर इसके समर्थकों का मानना है कि इस विषय को प्रतिबंधित न किया जाए। हां, यौन शिक्षा संबंधी सामग्री संतुलित होनी चाहिए। न तो इसमे एकदम खुलापन हो और न ही इसे बिल्कुल खत्म कर दिया जाए। यह कहना कि बच्चों को यौन शिक्षा देने की आवश्यकता नहीं है एकदम बेहूदा तर्क है। सर्वेक्षण से पता चला है कि किशोर उम्र के लड़के कभी-कभी यौन संबंध कायम कर ही लेते हैं। भारत में प्रसूति के कुल मामलों में 15 प्रतिशत किशोर उम्र की लड़कियां शामिल होती हैं।
देश में इस समय 52 लाख लोग एचआईवी से पीडि़त हैं, जिनमे 57 फीसदी मामले ग्रामीण क्षेत्रों के हैं। एड्स नियंत्रण का दायित्व संभालने वाला राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (नाको) कई राज्यों की आपत्ति के चलते स्कूलों में उपलब्ध कराई जाने वाली यौन शिक्षा सामग्री की समीक्षा करने को तैयार है। नाको का मानना है कि सेक्स की शिक्षा के लिए सचित्र किताबे वरिष्ठ शिक्षकों के लिए हैं। वह इनसे जानकारी हासिल कर बच्चों को समझाएंगे। उसका मानना है कि इस सामग्री से किशोरो को शरीर और शारीरिक परिवर्तनों के बारे में आधारभूत सूचना मिलती है। यदि बच्चों को यौन शिक्षा नहीं दी जाए तो वे गलत फैसला ले सकते हैं जिससे उनके भविष्य और स्वास्थ्य पर गलत असर पड़ सकता है।
इसके विपरीत स्कूली बच्चों को यौन शिक्षा के विचार के विरोधियों का तर्क है कि इससे लोगों की सांस्कृतिक संवेदना को चोट पहुंचती है। इस सरकारी फैसले के पीछे विदेशी हाथ है। वह यौन शिक्षा को सामाजिक ढांचे के लिए 'सुनामी' से भी ज्यादा घातक मान रहे हैं। उनका मानना है कि इससे उल्टे अनैतिक सेक्स को बढ़ावा मिलेगा। विदेशी कंपनियों के सूत्र वाक्य 'कुछ भी करो, कंडोम का इस्तेमाल करो' से उनकी मंशा स्पष्ट है। सुरक्षित सेक्स का ज्ञान देकर कोमल व किशोर वय के लड़के-लड़कियों को देह-व्यापार के पेशे में उतारे जाने की आशंका जताई जा रही है। बैकाक और थाईलैड की तरह भारत को भी सेक्स टूरिज्म के बड़े बाजार के रूप में विकसित करने की विदेशी चाल के रूप में भी इसे देखा जा रहा है। एक संगठन ने तो इसके खिलाफ एक किताब 'रेड एलर्ट' छापी है। कुल मिलाकर स्कूलों में यौन शिक्षा के विरोधियों का मानना है कि बच्चों को यौन शिक्षा की नहीं बल्कि अच्छी जीवनशैली से अवगत कराने की जरूरत है। दूसरी ओर अब सवाल उठता है कि स्कूली बच्चों के लिए, जिसका कि दिमाग एक कोरे कागज के समान होता है, यौन शिक्षा एक गंभीर विषय है। ऐसे में जल्दबाजी में उठाया गया कोई भी कदम समाज और राष्ट्र के लिए घातक साबित हो सकता है। क्या इसके बदले में किशोरो को एचआईवी एड्स, नशीले पदार्थ की लत आदि के बारे में समुचित जानकारी देकर उनको मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने के लिए तैयार करना ज्यादा उचित नहीं होगा? इस बारे में आप क्या सोचते हैं हमें लिख भेजिए-
स्कूलो मे सेक्स शिक्षा होनी चाहिए। इससे लोगो को सही जानकारी मिल सकेगी। शिव कुमार, भोपाल, भारत।
भारत के स्कूलो मे यौन शिक्षा देना उचित नही है। अगर यह शुरू हुई तो इसका घोर विरोध होगा। विपिन कुमार मिश्रा, काठमांडो, नेपाल।
मेरे विचार से स्कूलो मे यौन शिक्षा देना सही नहीं है। क्योकि इस तरह की शिक्षा तो फिल्मो के द्वारा भी आसानी से दी जा सकती है। महेद्र मौर्या, नोएडा, भारत।
स्कूलो मे सेक्स शिक्षा देना सही है। सुधांशु, औरैया, भारत।
स्कूलो मे सेक्स शिक्षा देना सही नही है। प्रमोद चौहान, दिल्ली, भारत।
मेरे विचार से भारत सरकार के ऊपर पश्िचमी संस्कृति हावी होती जा रही है। पीडी यादव, गाजीपुर, भारत।
स्कूलो मे सेक्स शिक्षा भविष्य मे एड्स पर काबू पाने की दिशा में एक असरदार कदम साबित होगी। कुनवर, दिल्ली, भारत।
भारत एक महान देश है और इसकी संस्कृति श्रेष्ठ है। इस तरह की शिक्षा देना देश की संस्कृति को मिट्टी मे मिलाने के समान है। विवेक मिश्रा, चंदौली, भारत।