जर्मन वैज्ञानिकों का कहना है कि शरीर का एक जीन तय करता है कि गर्भ में पल रहा बच्चा नर होगा या मादा। इस जीन को सुलाकर नारी को नर और जगाकर नर को नारी बनाया जा सकता है।
जर्मनी में हाइडेलबेर्ग स्थित यूरोपीयन मॉलेक्युलर बायोलॉजी लैबोरेटरी (यूरोपीय आण्विक जीव विज्ञान प्रयोगशाला) के वैज्ञानिकों ने पाया है कि एक जीन है फॉक्स एल-2, जो यदि चुपचाप रहे, निष्क्रिय रहे, तब भ्रूण नर बनता है और यदि यह जीन सक्रिय हो जाए तो भ्रूण मादा, यानी नारी बनता है।
यही नहीं, यदि नारी में जाग रहे इस जीन को फिर से सुला दिया जाए तो नारी भी फिर से नर बन जाएगी। एक वयस्क मादा चूहे में इस जीन को निष्क्रिय बना देने पर यही हुआ-मादा धीरे-धीरे नर बनने लगी। उसकी ओवरी यानी डिंबाशय की कोशिकाएँ टेस्टीस यानी अंडकोष की कोशिकाओं में बदलने लगीं।
इस अनोखी खोज का एक और अर्थ है, प्रकृति शुरू-शुरू में हर भ्रूण को नर ही बनाती है। नारी तो वह तब बनता है, जब जीन फॉक्स एल2 जाग जाता है और अपना जादू चलाने लगता है।
इससे अब तक की इस मान्यता का खंडन होता है कि नारी ही मनुष्य का सबसे सामान्य संस्करण है, नर बनाने के लिए प्रकृति को अलग से प्रयास करना पड़ता है।
हाइडेलबेर्ग के वैज्ञानिकों की टीम के जर्मन सदस्य मथियास ट्रायर कहते हैं, 'हम जानते हैं कि नारी के जीनोम में दो एक्स (XX) क्रोमोसोम होते हैं, जबकि नर का बनना एक्स के साथ जुड़े वाई (Y) क्रोमोसोम के द्वारा तय होता है जो हमें पिता से मिलता है। ऐसा वाई क्रोमोसोम पर के एक इकलौते जीन के कारण होता है, जो भ्रूण में अंडकोष बनने की क्रिया को आरंभ करता है।
वह सॉक्स 9 कहलाने वाले एक अन्य जीन को सक्रिय करके ऐसा करता है। सॉक्स 9 स्वयं कोई लिंग निर्धारक जीन नहीं है। मथियास ट्रायर और उनके साथी वैज्ञानिकों ने यह भी देखा कि यदि सॉक्स 9 नाम का जीन नहीं होता या निष्क्रिय बना रहता है, तो भ्रूण में डिंबाशय का विकास होने लगता है, यानी भ्रूण तब नारी बनता है।
कभी-कभी अपवादस्वरूप ऐसा भी होता है कि यह तालमेल ठीक से बैठ नहीं पाता और तब भ्रूण एक ऐसा नर बनने लगता है, जिस में एक्स और वाई की जगह दोनों बार एक्स क्रोमोसोम ही होता है।
वैज्ञानिकों को लंबे समय से शक था कि नर या नारी बनाने के खेल में एक्स और वाई क्रोमोसोम ही सब कुछ नहीं होते, कुछ ऐसे जीन भी होने चाहिए, जो इस खेल के खिलाड़ी हैं।
मथियास ट्रायर बताते हैं, 'एक दशक से भी कुछ पहले हमने कोषिका प्रतिलिपि बनने को नियंत्रित करने वाले फॉक्स एल2 की पहचान की थी। उस के काम को एक ऑटोसोमल जीन, यानी एक ऐसा जीन कोडबद्ध करता है, जो लिंगनिर्धारक क्रोमोसोम पर का जीन नहीं है और केवल नारी के गोनैड में ही यौन संरचनाओं का निर्माण करता है।'
गोनैड को हिंदी में जननग्रंथि या यौनग्रंथि भी कहते हैं। मथियास ट्रायर कहते हैं, 'हम उस समय चकित रह गए, जब हमने एक वयस्क मादा चूहे के डिंबाशय में फॉक्स एल2 को निष्क्रिय बना दिया और तब देखा कि उसके डिंबाशय की जगह अंडकोष बनने लगे थे। उनकी कोशिकाएँ वीर्यवाही नलिकाओं का रूप लेने लगी थीं।'
सवाल यह है कि लिंग निर्धारित करने वाली प्रक्रिया के एक अकेले कारक को बदल देने से इतना बड़ा परिवर्तन कैसे होने लगता है। मथियास ट्रायर की राय में, 'उत्तर है, फॉक्स एल2 एक अन्य नियंत्रक को बाँधे और दबाए रखता है, जिसे टेस्को कहते हैं।
सॉक्स9 कहलाने वाले जीन को अपना काम करने का मौका देने के लिए टेस्को की जरूरत पड़ती है। हमारी खोज के परिणाम दिखाते हैं कि फॉक्स एल2 और सॉक्स9 एक दूसरे को अपने ऊपर हावी होने से रोकने के प्रयास में ऊपर नीचे होते होते रहते हैं। यह क्रिया विकासवाद का हिस्सा मालूम पड़ती है।'
दूसरे शब्दों में हमारे जीनोम में, यानी हमारे जीन भंडार में, वाई क्रोमोसोम पर का फॉक्स एल2 ही वह जीन है, जो अपनी सक्रियता या निष्क्रियता द्वारा तय करता है कि भ्रूण को नर बनना है या नारी। इसे इस तरह भी कह सकते हैं, हर व्यक्ति में पुरुष या स्त्री बनने के सारे जीन पहले से ही मौजूद रहते हैं।
यानी हम सभी स्त्री पुरुष दोनो हैं। जो जीन अंत में हावी हो जाते हैं, वे ही तय करते हैं कि अंततः हम दोनों में से क्या बनेंगे। जिसे अपना लिंग बदलना हो, उस के जीनोम में फॉक्स एल2 को सक्रिय या निष्क्रिय कर देने से उस का लिंग बदला जा सकता है, ऑपरेशन की जरूरत तब नहीं पड़नी चाहिए। यह प्रयोग अभी मनुष्यों पर नहीं हुआ है।
रिपोर्ट-राम यादव
सौजन्य से - डॉयचे वेले, जर्मन रेडियो